२१७. सुरत पियाकी छिन् विसराये
हर हरदम उनकी याद आये ॥धृ.॥
नैनन और न को समाये
तरपत हूं बिलखत रैन निभाये
अखियाँ निर असुबन झर लाये ॥१॥
साजन बिन मोहे कछुना सुहाये
इस बिगरी को कौन बनाये
हसनरंग असु जी बहलाये ॥२॥
गीत : पुरुषोत्तम दारव्हेकर
संगीत : पं. जितेंद्र अभिषेकी
स्वर : पं. वसंतराव देशपांडे
नाटक : कट्यार काळजात घुसली (१९६७)
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